भारत में महिलाओं की स्थिति पर एक निबंध
आज के समय में भारत में महिलाओं की स्थिति पर एक व्यापक चर्चा की आवश्यकता है। हाल ही में Global Gender Gap Report 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर रहा, जो यह दर्शाता है कि लैंगिक समानता की दिशा में अभी भी भारत को लंबा सफर तय करना है। इस निबंध में हम भारत में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा करेंगे, जिसमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, राजनीतिक भागीदारी, और सामाजिक सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों को शामिल करेंगे। इसके साथ ही हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि इन विभिन्न आयामों में महिलाओं की स्थिति कैसी है और समाज को किस तरह से इस दिशा में सुधार करना चाहिए।
शिक्षा महिलाओं की प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण आयाम है, क्योंकि इससे उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता मिलती है और वे अपने लिए बेहतर जीवन बना पाती हैं। भारत में महिलाओं की साक्षरता दर लगभग 70% है, जो पुरुषों की तुलना में काफी कम है। ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में अब भी कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि बाल विवाह, गरीबी और सांस्कृतिक प्रतिबंध। सवाल यह है कि जब महिलाओं की शिक्षा में सुधार के लिए कई सरकारी योजनाएं हैं, तो क्या कारण है कि अब भी इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित रह रही हैं?
जो महिलाएं भारत में अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेती हैं उन शिक्षित महिलाओं के लिए भारत में रोजगार के अवसर सीमित हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, 2020 में भारत में महिला श्रम भागीदारी दर मात्र 20.3% थी। समाज में महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता का अभाव उनके समग्र विकास को बाधित करता है। कई उद्योगों में महिलाएं अब भी समान वेतन और कार्यस्थल पर सुरक्षा से वंचित हैं। यह सवाल उठता है कि महिलाएं अगर शिक्षित हैं, तो उन्हें रोजगार के क्षेत्र में अवसर क्यों नहीं मिल पा रहे हैं?
महिलाओं की शिक्षा और रोजगार की कमी उनके स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है। मातृ मृत्यु दर (MMR) और कुपोषण की समस्याएं विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में अधिक हैं। भारत में मातृ मृत्यु दर प्रति 100,000 जन्मों पर 97 है, जो अब भी उच्च मानी जाती है। इसके साथ ही, महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों जैसे कि अवसाद और चिंता का सामना करना पड़ता है, जिन पर समाज में खुलकर चर्चा नहीं होती। शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की अच्छी सुविधाएँ न होने का एक प्रमुख कारण महिलाओं का राजनितिक भागीदारी का कम होना भी है।
राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी एक महत्वपूर्ण मापदंड है, जो समाज में उनके सशक्तिकरण का संकेत देता है। भारत में, महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण के लिए कानून बनाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है। हालांकि, ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, लेकिन उच्च राजनीतिक पदों पर अब भी उनकी भागीदारी सीमित है। यहां सवाल यह है कि अगर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी इतनी आवश्यक है, तो उन्हें उच्च स्तर के निर्णय लेने वाले पदों पर जगह क्यों नहीं मिल पा रही है ताकि वह महिलाओं के अधिकारों और समाजिक सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय ले सके।
महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के मामले में भारत में कई चुनौतियां हैं। दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याएं आज भी मौजूद हैं। National Crime Records Bureau (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ी है। विभिन्न कानून और योजनाएं होने के बावजूद, महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा में कई खामियां हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून और योजनाएं उपलब्ध हैं, तो महिलाओं के खिलाफ अपराध क्यों कम नहीं हो रहे हैं और महिलाओं की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो रहे?
महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए मानसिकता का परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है। समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता महिलाओं को दबाने का प्रयास करती है। पारिवारिक और सामाजिक संरचनाओं में पितृसत्ता की जड़ें गहरी हैं, जो महिलाओं को सीमित भूमिकाओं में कैद रखती हैं। उदाहरण के लिए, आज भी अधिकांश परिवारों में महिलाओं को घर की देखभाल की जिम्मेदारी दी जाती है, जबकि पुरुषों को बाहरी दुनिया के कार्यों का भार सौंपा जाता है। यह पारंपरिक सोच महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को और जटिल बना रही है जिस कारण महिलाओं को अब डिजिटल विभाजन जैसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
तकनीकी युग में भी, भारत में डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण महिलाओं को कई अवसरों से वंचित रहना पड़ता है। डिजिटल विभाजन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बढ़ता जा रहा है, जहां ग्रामीण इलाकों की महिलाएं तकनीकी सुविधाओं तक पहुँच नहीं रखती हैं। Internet and Mobile Association of India (IAMAI) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 43% महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में कम है। क्या डिजिटल शिक्षा में निवेश से महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हो सकता है?
भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में समग्र प्रयास आवश्यक हैं। सबसे पहले, शिक्षा को महिलाओं के सशक्तिकरण का मुख्य स्रोत माना जाना चाहिए। महिलाओं की रोजगार के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा जैसे सरकार ने 2024 के बजट में 1 करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप का प्रावधान करा है तो, ऐसी योजनाओं में महिलाओं को प्रमुखता दिए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि से भी उनके सशक्तिकरण में मदद मिलेगी। इसके अलावा, समाज में पितृसत्ता और रूढ़िवादी मानसिकता को बदलना अनिवार्य है। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां महिलाएं समानता और स्वतंत्रता के साथ आगे बढ़ सकें और भारत वास्तविक स्वतंत्रता की और बढ़ सके।
“आप किसी देश की स्थिति का अंदाजा उसकी महिलाओं की स्थिति देखकर लगा सकते हैं।” जवाहरलाल नेहरू
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